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गन्ने की खेती कैसे करें | How To Cultivate Sugarcane | गन्ने के बुवाई के तरीक़े

बसंत कालीन में गन्ने की खेती एक प्रमुख खेती के रूप में जाना जाता है। भारत में कई वर्षों से गन्ने की खेती हो रही हैं। आज देश में लगभग एक लाख से ज्यादा लोग गन्ने की खेती से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी प्राप्त कर रहे हैं। गन्ना की खेती एक ऐसी खेती है जो कि विषम परिस्थितियों में भी किसानों को लाभ कराने में मदद देती है। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गन्ने की खेती कैसे करें, गन्ने की बुवाई कैसे करें। हमारे साथ बने रहे अगले को पूरा पढ़ें।

गन्ने की खेती करने का सही समय

देश में गन्ने की खेती बसंतकालीन और शरदकालीन में होती है। अधिकतम किसान बसंत ऋतु मे ही खेती करते है। बसंत कालीन में गन्ने की खेती 15 फरवरी से 15 मार्च तक किया जाता है। यह गन्ने की खेती के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ समय माना गया है। इस ऋतु में आलू, मटर, तरैया या सब्जियों वाली खेत जो खाली होता है। उसमें लोग गन्ने की बुवाई करते हैं। जबकि शरद ऋतु में गन्ने की बुवाई 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिए।

गन्ने की खेती के लिए मिट्टी तैयार करना

गन्ने की खेती करने के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मिट्टी मानी गई है। जिस भूमि में क्षारीय/अमली गुण होते हैं या जिस भूमि में पानी के जमाव की समस्या रहती है। उस खेत में गन्ने की खेती करना मुश्किल होता है। खेत को तैयार करने के लिए किसान भाइयों को सबसे पहले हल से जुताई करना चाहिए। इसके बाद उसमें गोबर की खाद डालकर खेत को एक बार पलेवा कर देना चाहिए। इसके बाद 1 से 2 हफ्ते बाद जब खेत हल्का सा सूख जाए तो उसको कल्टीवेटर से जुताई करा के मिट्टी को भुरभुरी कर लेना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि जिस खेत में अपने पिछले वर्ष गन्ने की खेती की थी उस वर्ष इस खेत में गन्ने की खेती ना करें।

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गन्ने की खेती के लिए बीज

गन्ने की बुवाई करते समय किस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप जिस भी बीज की बुवाई कर रहे हैं। उस गन्ने में किसी भी प्रकार का रोग नहीं लगा होना चाहिए तथा अगर आप ऊपरी भाग को ही बीज के काम में ले तो वह बहुत ही अच्छा पैदावार देता है। गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़े को काट देना चाहिए। प्रति हेक्टेयर लगभग आपको 35 से 40 हजार टुकड़े की जरूरत होती है। इसकी वजन लगभग 70 से 75 क्विंटल होगा। बीज को बोने से पहले आप एक बार बीज का कार्बनिक कवकनाशी से उपचार जरूर कर ले।

गन्ने को बोने की विधि

गन्ने की बुवाई बसंत ऋतु और शरद ऋतु दोनों में किया जाता है। वसंत ऋतु75 से.मी. की दूर पर तथा शरद ऋतु में 90 से.मी. की दूरी पर रिजन से बुवाई करने के लिए सबसे पहले आपको 20 सेंटीमीटर गहरी नालियों को खोद लेना चाहिए। उसके बाद उसमें उर्वरक ड़ाल देना चाहिए। उसके बाद उसके अंदर गन्ने के बीज को लाइन से आपको बुवाई करना चाहिए। बुवाई करते समय आप उसमें बीएचसी को पानी में घोलकर गन्ने के बीज के टुकड़ों पर छिड़काव करें। जिससे कि दीमक व जड़ और तने में भेदक कीड़े नहीं लगते हैं। उसके बाद उसको मिट्टी से ढक दें। इस फसल में दीमक लगने का समस्या ज्यादा रहती है। तो 5 लीटर गामा बी.एच.सी. 20 ई.सी. का प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में सिंचाई करते समय प्रयोग करना चाहिए।

गन्ना बुवाई करने की मशीन?

अगर आप गन्ने की बड़ी खेती करना चाहते हैं। तो आपको गन्ने की बुवाई के लिए मशीन का प्रयोग करना चाहिए। इस मशीन का नाम है सीडर कटर प्लांटर। जिसका उपयोग करके आप कई एकड़ का काम कई घंटों में ही खत्म कर सकते हैं।

गन्ने की सिंचाई कब करें?

गन्ने की सिंचाई बसंत ऋतु में लगभग 6 बार सिचाई करने की आवश्यकता होती है। वही बारिश के मौसम आने से पहले आपको 4 बार गन्ने की सिंचाई करना चाहिए। तराई क्षेत्रों में गन्ने की सिंचाई केवल दो या तीन पानी की जरूरत होती है। बारिश के समय केवल एक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण

गन्ने की खेती में अच्छी पैदावार के लिए खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत ही आवश्यक होता है। गन्ने की बुवाई करने के 20 से 25 दिनों के अंतराल पर आपको खेत की निराई -गुड़ाई करके खरपतवार को नियंत्रण करना चाहिए। इसकी खेती में आप रासायनिको का प्रयोग करके खरपतवार को नष्ट नहीं कर सकते। गन्ना बोने के तुरंत बाद आप एट्राजिन तथा सेंकर का एक किग्रा सक्रिय पदार्थ एक हजार लीटर पानी में खरपतवार होने की दशा में छिडक़ाव कर सकते है।

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गन्ने की खेती में रोग और रोकथाम

गन्ने की खेती में अधिकतर गन्ने के बीज में ही रोग लगते हैं। इन सभी रोगो के रोकथाम के लिए आप नीचे बताए गए तरीकों को अपना सकते है।

गन्ने की बुवाई करते समय आपको स्वस्थ बीजों का ही चुनाव करना चाहिए।

बीज कहीं कटे, लाल रंग एवं एवं गांठों की जड़ निकाल लें तथा सूखे टुकड़ों को पहले से ही आपको अलग कर देना चाहिए।

बुवाई करते समय आपको बीजों को ट्राईकोडर्मा की 10 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर से उपचारित कर लेना चाहिए।

जिस खेत में गन्ने में रोग लग गया है उस खेत में आप 1 या 2 साल खेती नहीं करना चाहिए।

गन्ने के कीटों की रोकथाम कैसे करें

दीमक एवं अंकुरबेधक (अर्ली सतवेटर) की रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफॉस 4 लीटर/हैक्टर की दर से बुआई के बाद टुकड़ों पर मशीन से छिड़काव करना चाहिए।

तनाबेधक, पोरीबेधक, स्लग केटरपिलर एवं करंट कीट की रोकथाम के लिए इंडोसल्पफॉस 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

चोटीबेधक की पहली पीढ़ी एवं काली चिट्टा वाले कीटों की रोकथाम के लिए आप को मोनोक्रोटाफॉस 1 मिली प्रति लीटर लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए।

गन्ने की खेती में उर्वरक एवं खाद

गन्ने की फसल आम फसलों से लंबी अवधि की होती है। इसीलिए इसमें उर्वरक और खाद की भी आवश्यकता अधिक होती है। खेत की बुवाई करने से पहले उसमें लगभग 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद सामान्य रूप से डालना चाहिए। उसके साथ-साथ 250 से 300 किलो नाइट्रोजन, 50 से 60 किलो सल्फर, 60 से 70 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

बुवाई करते समय सल्फर और पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की मात्रा को कम उपयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन को आपको तीन भागों में विभाजित करके गन्ने की खेती के लिए उपयोग करना चाहिए। पहला आपको 30 दिन दूसरा 90 दिन और तिसरा 120 दिनों में प्रयोग करना चाहिए। अगर आपके पास नीम की खली या सरसों की खली है तो आप नाइट्रोजन में मिलाकर उसका प्रयोग कर सकते हैं। इससे खेत की शक्ति बढ़ती है।

गन्ने को गिरने से कैसे बचाये

गन्ने को गिरने से बचाने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं नीचे कुछ प्रकार बताएं गए हैं

गन्ने की बुवाई आपको पूरब और पश्चिम दिशा की कतारों में करना चाहिए।

गन्ने की बुवाई करते समय दोनों तरफ 20 से 30 सेंटीमीटर मिट्टी दो बार चढ़ाएं। पहला जब पौधा 2 से 3 मीटर का हो और दुसरा 120 दिन बाद।

गन्ने की बंधाई करें। जब पौधा 2 से 3 मीटर का हो जाए तो उसकी पत्तियों के सहारे उसकी एक बंधाई जरूर करें।

गन्ने की जल्दी पकने वाली किस्मे

पश्चिमी क्षेत्रो मे गन्ने की किस्म:- कोशा 64, कोशा 88230, कोशा 92254, कोशा 95255, कोशा 96268, कोशा 03234

मध्यवर्ती क्षेत्रो मे गन्ने की किस्म:- कोशा 64, कोशा 90265, कोशा 87216, कोशा 96258

तराई क्षेत्रो मे गन्ने की किस्म:- कोशा 88230, कोशा 92254, कोशा ०95255, कोशा 96260, कोशा 96268

गन्ने की मध्य देर से पकने वाली किस्मे

पश्चिमी क्षेत्रो मे गन्ने की किस्म:- कोशा पंत. 84121, कोशा 767, कोशा 8432, कोशा 96269, कोशा 99259, को. पंत. 90233, कोशा 97284, कोशा 07250, कोशा 01434

मध्यवर्ती क्षेत्रो मे गन्ने की किस्म:-: कोशा 767, कोशा 93218, कोशा 96222, कोशा 92223

तराई क्षेत्रो मे गन्ने की किस्म:-: कोशा पंत 84121, कोशा 767, कोशा 90269, कोशा 94270, कोशा 93278, कोशा 92423, कोशा 8432

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गन्ना की खेती मे कितनी कमाई होती है

गन्ने की खेती से आप आम फसल जैसे गेहूं, धान, सोयाबीन की तुलना में अधिक कमा सकते हैं। गन्ने की खेती में न्यूनतम जोखिम रहता है। रोग, कीट ग्रस्तता का कम असर रहता है। गन्ने की अच्छी किस्म की पैदावार करके आप साल दर साल डेढ़ लाख रुपए प्रति हेक्टेयर से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं।

भारत मे गन्ने की खेती कहां होती है?

भारत विश्व मे दूसरे स्थान पर गन्ने का उत्पादन करता है। पहले स्थान पर पुरे विश्व ब्राज़ील है। भारत देश के लगभग सभी राज्य में गन्ने की खेती की जाती है। सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा में बिहार आदि शामिल है। देश में सबसे ज्यादा गन्ने का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। कुल उत्पादन का लगभग 50 परसेंट उत्तर प्रदेश में हा होता है। भारत में हर साल लगभग 720 क्विंटल हेक्टेयर गन्ने का उत्पादन होता है।

FAQs:-

प्रश्न: गन्ने की खेती के लिए साल का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

उत्तर: गन्ना बोने का सबसे अच्छा समय जलवायु के आधार पर अलग- अलग होता है, लेकिन यह आमतौर पर बसंतकालीन और शरदकालीन मौसम में लगाया जाता है, जब मिट्टी की नमी अधिक होती है और तापमान गर्म होता है।

प्रश्न: प्रति एकड़ गन्ने का उत्पदान कितना होता है?

उत्तर: गन्ने की उत्पादन खेत और क्षेत्र के उपर निर्भर करता है, लेकिन प्रति वर्ष प्रति एकड़ 70 से 130 टन गन्ना के बीच एक सामान्य उपज होती है।

प्रश्न: गन्ने की फसल मे लगने वाले प्रमुख कीट एवं रोग कौन से हैं?

उत्तर: गन्ने मे विभिन्न प्रकार के कीटों और रोगों के लगते है, जिसमें नेमाटोड, चूहे, पक्षी और कवक रोग जैसे लाल सड़न भी शामिल हैं। अच्छी कृषि पद्धतियाँ, जैसे फसल चक्र, उचित सिंचाई, और प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग, कीट और रोगों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकती हैं।

प्रश्न: गन्ने की कटाई कैसे करें?

उत्तर: गन्ने की कटाई आमतौर पर जमीन के पास के डंठल को काटकर और पत्तियों को हटाकर की जाती है। इसके बाद डंठलों से पत्तियो  को हटा लिया जाया जाता है, इसके बाद रस निकालते है, इसके बाद में चीनी, गुड़ आदि बनाने का कार्य करना है।

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