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किसानों के पास अब नई कृषि मशीनें हैं जो कई प्रक्रियाओं को सरल बनाती है। लेकिन इन तकनीकी के बावजूद धान की फसलो मे कई रोग लग जाते है। जिसके कारण बार-बार कीटनाशक छिड़काव की आवश्यकता होती है। इन रोगों का मुख्य कारण धान की फसल में जिंक की कमी है।
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जिंक धान की फसलों की स्वस्थ वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है। यह एंजाइम सक्रियण, प्रोटीन संश्लेषण और कार्बोहाइड्रेट चयापचय सहित विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मिट्टी में जिंक का पर्याप्त स्तर धान के पौधों द्वारा इष्टतम पोषक तत्व ग्रहण करना सुनिश्चित करता है
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धान की फसल में जिंक की कमी का एक प्राथमिक संकेत है पत्तियों का पीला पड़ना। यह लक्षण क्लोरोफिल उत्पादन में व्यवधान के कारण होता है, जिससे प्रकाश संश्लेषक दक्षता कम हो जाती है।
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फसल मे गंभीर जिंक की कमी से पत्तियों पर भूरे धब्बे दिखाई दे सकते हैं। ये धब्बे परिगलन और कोशिका मृत्यु का संकेत देते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पौधे की ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता बाधित होती है।
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धान की पौध रोपाई से पहले प्रति एकड़ 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट मिलाकर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। यह सुनिश्चित करता है कि उभरते पौधों के लिए जिंक आसानी से उपलब्ध है, जिससे उनके प्रारंभिक विकास को बढ़ावा मिलता है
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1 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 5 किलोग्राम यूरिया का घोल 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ डालना चाहिए। यह उपचार पौधों को आवश्यक जिंक की आपूर्ति करने में मदद करता है और उनकी रिकवरी को सुविधाजनक बनाता है।
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धान की फसल के स्वस्थ विकास में जिंक के अलावा पोटाश भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बाली निकलने की अवस्था में प्रति एकड़ 30 से 35 किलोग्राम पोटाश डालना आवश्यक है। यह प्रयोग एफिड्स की संभावना को कम करता है
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